रविवार, 14 अप्रैल 2013

गन्ने की पेड़ी फसल से अधिकतम उपज लेने के गुर

                                         
                                                                           डॉ गजेन्द्र सिंह तोमर 
                                                                      प्राध्यापक (सश्यविज्ञान)
                                                                 इंदिरा गांधी कृषि विश्व विद्यालय, 
                                                                  कृषक नगर, रायपुर (छत्तीसगढ़)


                                                      आर्थिक लाभ का साधन है गन्ने की पेड़ी फसल  
    एक बार बोए गये गन्ने की फसल  काट लेने के उपरान्त उसी गन्ने से दूसरी फसल लेने के प्रक्रिया को  पेड़ी कहते है । गन्ने की रोपी गई फसल की कटाई के उपरान्त उसी खेत में रोपित फसल की जड़ों से गन्ने के नये पौधे निकलते है। इससे गन्ने की जो फसल प्राप्त होती है उसे गन्ने की पेड़ी या जड़ी (रेटून) कहते है । आमतौर पर गन्ने की फसल से एक या दो पेड़ी की फसल अवश्य लेंना चाहिए। देश में लगभग दो तिहाई क्षेत्र में पेड़ी की फसल  ली जाती है।
    पेड़ी रखने से खेत की तैयारी, बीज एवं बुवाई का खर्च, श्रम एवं समय की बचत ह¨ती है । अतः पेड़ी फसल का उत्पादन व्यय कम आता है । पेड़ी फसल अपेक्षाकृत कम समय में पककर तैयार ह¨ जाती है जिससे उस खेत में दूसरी फसल जैसे गेहूँ, चना आदि की बुवाई समय से हो सकती है । पेड़ी की फसल शीघ्र तैयार ह¨ने के कारण चीनी मिलो  में शीघ्र पेराई कार्य शुरू हो  जाता है । पेड़ी की फसल लेने से मुख्य फसल में दी गई उर्वरको  की मात्रा  के अवशेष (विशेषकर स्फुर व पोटाश आदि) का उपयोग हो  जाता है । नई बोई गई फसल (नोलख) की अपेक्षा पड़ी फसल को  कम सिंचाई की आवश्यकता हो ती है । इस फसल से प्राप्त गन्ने में चीनी प्रतिशत अधिक पाया जाता है ।एक ही खेत में लगातार गन्ने की फसल  कई वर्ष तक खड़ी रहने के कारण फसल पर कीट-रोग का प्रकोप बढ़ जाता है । भूमि की उर्वरा शक्ति एवं उपजाऊपन में कमी होती है । कभी-कभी फसल कमजोर होने के कारण उपज कम प्राप्त होती है जिससे आर्थिक नुकसान हो  सकता है ।
गन्ना किस्म को-8 6 0 3 2 

कैसे लें  गन्ने की पेड़ी फसल से बेहतर उत्पादन

    पेड़ी फसल का उचित सस्य-प्रबन्धन न करने से गन्ने की उत्पादकता कम हो जाती है। प्रायः पेड़ी की पैदावार मुख्य फसल(नोलख) से कम होती है। पेड़ी की फसल से अधिकतम उपज लेने के लिए निम्न सस्य तकनीक अपनाना आवश्यक है ।
1. पेडी हेतु उन्ही किस्मों का चयन करें जिनमें जड़ी उत्पादन क्षमता अधिक हो, उदाहरण के लिए को-86032, को-85004 (प्रभा)आदि।
2. पेड़ी के लिये गन्ने को सही समय पर काटना चाहिये। फरवरी के पहले सप्ताह तक काटे गये गन्ने की पेड़ी अच्छी होती है।  मार्च के बाद काटे गये गन्ने की पेडी़ अच्छी नही होती हैं।
3. गन्ने की पहली फसल (नोलख) क¨ जमीन की सतह के पास से ही काटा जावें ।ऊपर से काटने पर कल्लो  की संख्या कम हो  जाती है । यदि मिट्टी चढ़ाई गई हो , तो  अच्छा यही रहेगा कि मिट्टी को  गिराने के बाद ही गन्ना काटा जाए ।
4. कटाई कें तुरंत बाद कुडें कचरे तथा सूखी पत्तियों  को आग लगाकर जला देना चाहियें। इन पत्तियों को खेत में सडा दिया जाए तो खाद का कार्य करेंगी परंतु भूमि में पत्तियां खाद के लिए छोडना होतो भूमि का उपचार आवश्यक रहता है।
5. पेड़ी वाले खेत में, जहाँ जगह खाली हो वहाँ नया गन्ना लगाएं। इस कार्य हेतु गन्ने का ऊपरी भाग प्रयोंग में लायें। गन्ने के टुकडे बोने का उचित समय वही होगा जब खेत पहली सिंचाई के बाद काम करने की स्थिति में आ जाये।
6. पेड़ी मे मुख्य फसल की तुलना मे अधिक सिंचाइयों क आवश्यकता होती है, इसलिये उसमें अधिक पानी देना चाहिये। प्रत्येक सिंचाई में 6-7 सेमी. पानी देना चाहिये। वर्षा ऋतु के पहले 15 दिन के अंतर से तथा बाद में 20 दिन के अंतर से सिंचाई करते रहना चाहिये।
7. खेत के बतर में आने पर गरेडों के दोनो ओर हल चलाकर पुरानी गरेडों (नालियाँ) को तोड़ देना चाहिए। इससे पुरानी जड़ टूट जाती है तथा भूमि में वायु संचार बढ़ जाता हैं जिससे नई जड़ों का विकास होता है।
8. पेड़ी को मुख्य फसल की अपेक्षा अधिक खाद-उर्वरक की आवश्यकता होती है। अतः इसमे गोबर की खाद 12-15 गाड़ी, 300 कि. ग्रा. नत्रजन, 75 कि.ग्रा. स्फुर व 25 कि.ग्रा. पोटाश प्रति हेक्टेयर के हिसाब से देना चाहिये।नत्रजन की एक तिहाई मात्रा तथा स्फुर व पोटाश की पूरी मात्रा गरेडों (नालियो) में   देना चाहिए। नत्रजन का दूसरा भाग, तीन माह बाद तथा शेष एक तिहाई, अंतिम बार मिट्टी चढ़ाते समय देना चाहिये।
9. खाद देने के बाद देशी हल या रिजर में पटिया बाँध कर गन्ने के ठुठों पर मिटटी चढाएँ तथा सिंचाई करें।
10. पेड़ी फसल में भी जैव उर्वरक यथा 2.5 कि. ग्रा. एजोटोबैक्टर व 5 कि. ग्रा. पी. एस. बी.प्रति हेक्टेयर का प्रयोग करने से नत्रजन व स्फुर की  लगभग 20 प्रतिशत बचत होती है।
11. कीट-बीमारियों से प्रभावित फसल की पेड़ी कभी नही लेना चहिये। पेड़ी फसल के ठुँठो  पर एमीसान -6 दवा 300 ग्रा. 400 लिटर पानी  घोलकर हजारे की  मदद से छिडकें। यदि पपड़ी कीट की आशंका हो तो उपरोक्त दवा के साथ मैलाथियान 50 ई. सी. 750 मि. ली. मिलाकर प्रति हेक्टेयर छिड़काव करें।
12. फसल पर मिटटी चढ़ाना तथा पौधों की बँधाई करना भी आवश्यक है। जब पौधों की लम्बाई 7-8 फुट हो जावे (वर्षा ऋतु) तो बँधाई का काम शुरू कर देना चाहिये।
13. पेड़ी फसल मुख्य फसल की अपेक्षा जल्दी पककर तैयार हो जाती हैं। अतः इसे पहले ही काट लेना चाहिये । जल्दी पकने वाली किस्मो  की पेडी 9-10 महीने में पककर तैयार हो जाती हैं तथा देर से पकने देर से पकने वाले गन्ने 10-12 महीने में तैयार होती है। देर से काटने पर पैदावार कम मिलने के अलावा शक्कर की मात्रा में कमी आ जाती है और गुड भी दानेदार नहीं बनता है।

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